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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
काँपत अमर खलभल मचै ध्रुवलोक, उड़गन-पति अति संकनि सकता हैं।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
भूमि परी डाबर पहचानी। इमि जीवहिं माया लपटानी।। अमर मूल, पृ. 178
हिंदुस्तानी पत्रिका
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कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
रस तरंगिणी उज्जवल गीत मणि विद्वन् मंडलगीत गोबिन्द गोवर्द्धन सप्तशती अमर कोष
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
(पृ. 197)टीका-। अन्योक्ति। अमर-। काहू कौ कार्ज लघु ही सिद्व भये। ताषैं अन्योक्ति।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा
सात समुद्र जल भरयो, तरयो मोहोल ते उपर दरवाजे भाणक दरखत, छत्रपण अमर छाजे,
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
जै जै श्रीहरिदेवजी, तुम देवन के देव। तुम सेवन पातक नसै, लहै अमर पुर मेव।।3।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(50) जल से गाढ़ो थल धरो, जल देखे कुम्हिलाय।लाओ बसुंदर फूँक दें, जो अमर बेल हो जाय।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(50) जल से गाढ़ो थल धरो, जल देखे कुम्हिलाय। लाओ बसुंदर फूँक दें, जो अमर बेल हो जाय।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मंझनकृत मधुमालती - श्री चंद्रबली पाँडे एम. ए.
निहचै अमर होइ जुग जुग सो, काल न आवै पास।। (2) मंझन ने जग जनम लै बिरह न कीया चाव।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जाहरपीरः गुरु गुग्गा, डा. सत्येन्द्र - Ank-2,1956
(ई) केंचुली उतारना देखकर उद्भावना कि इस कचुली में आंख से लगा लेने पर आदमी अदृश्य
भारतीय साहित्य पत्रिका
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बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
प्रसिद्ध सूफ़ी विद्वान् ख्व़ाजा हसन निज़ामी फरमाते हैं कि बेदम का तख़ल्लुस ही पूरा ग्रन्थ है