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मूसा :- तुझसे इतना बड़ा गुनाह हो गया है जिसका कोई कफ़्फ़ारा नहीं।गडरिया ! “सच-मुच मेरे गुनाह का कोई कफ़्फ़ारा नहीं! ग़म और ना-उम्मीदी से भरा हुआ गडरिया उट्ठा।उसने अपना कम्बल कंधे पर डाला, लकड़ी हाथ में ली और भेड़ें पीछे छोड़कर बयाबान जंगल की तरफ़ निकल गया।
क़ुरआन-ए-मुक़द्दस में कई मक़ामात पर कफ़्फ़ारा के तौर पर भूकों और मिस्कीनों को खाना खिलाने का हुक्म दिया गया है।हज़रत मुहम्मद ने फ़रमाया कि दीन तो सरासर ख़ैर-ख़्वाही का नाम है और तमाम मख़्लूक़ को ख़ुदा का कुंबा क़रार दिया।जैसा कि मिश्कात शरीफ़ में हैः
“शाम की नमाज़ के बा’द सूफ़ियान-ए-आ’ली-मर्तबत की जमाअ’त की ख़ूबियों का ज़िक्र आया तो फ़रमाया कि
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