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सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
बशर को अपनी हर कोशिश में क्यों कर कामयाबी होके तीर-अफ़्ग़न के तीर अक्सर नहीं लगते निशाने पर
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
क़व्वाली का माज़ी और मुस्तक़बिल
ये तो ज़ाहिर है कि अब पुरानी क़व्वाली को अपनी असली शक्ल में पहले जैसी मक़्बूलियत
मुनादी
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली - हुस्नुद्दीन अहमद
” एक ज़माना में मेरा ठिकाना क़िबला-ए-इस्लाम देहली था जो तमाम दुनिया के बादशाहों का क़िबला
मुनादी
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
मुझे ये लंबी तम्हीद इसलिए बाँधनी पड़ी ताकि भूक और ख़ुराक की क़िल्लत जैसे आ’लमी बोहरान
रहबर मिस्बाही
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
बारह ज़बानों में देहलवी हिंदवी वही खड़ी बोली है जो उस वक़्त ख़ास तौर पर दिल्ली
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
वो ज़माना ऐसा था कि चाहे शिवाजी हो या औरंगज़ेब गोलकुंडा का सुल्तान हो या बीजापुर
मुनादी
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
मुनादी
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हज़रत मौलाना शाह हिलाल अहमद क़ादरी मुजीबी
वो एक ज़िंदा दिल इन्सान थे।मुतनव्वे औसाफ़ ओ कमालात के मालिक थे।उनका मुतालआ बड़ा वसीअ था।अपने
रय्यान अबुलउलाई
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
और फिर फ़रमाया कि इन बातों की कुछ ज़रूरत नहीं।सिर्फ़ मौलाना का ख़त काफ़ी है।शम्स ने
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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क़ौल, क़ल्बाना, नक़्श, गुल, तराना, छंद और रंग
अ’वामी क़व्वाली या’नी जदीद क़व्वाली का आग़ाज़ बीसवीं सदी ई’सवी की पांचवें दहाई से हुआ। यहाँ
अकमल हैदराबादी
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जदीद क़व्वाली और मूसीक़ी
पहले तो क़व्वाली की धुनें बहुत मख़्सूस और महदूद थीं, इन्हीं धुनों में कलाम के रद्द-ओ-बदल
अकमल हैदराबादी
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क़व्वाली के ग्रामोफ़ोन रिकार्डर
थॉमस एडीसन की ईजाद ग्रामोफ़ोन और रिकार्ड साज़ी की इब्तिदा हिन्दोस्तान में उन्नीसवीं सदी के आख़िरी
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
जदीद क़व्वाली पर जोश मलीहाबादी, फ़िराक़ गोरखपूरी और कैफ़ी का असर
मुशाइ’रों में शाइ’र की कामयाबी का दार-ओ-मदार अच्छे कलाम के साथ अच्छे तरन्नुम या तहत-अल-लफ़्ज़ के