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सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
तेथे मनुष्याचें काय आहे तुका म्हणे कारे नाशवंतासाठीं
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
बर कारे इत्तिफ़ाक़ कर्दंदचूँ आँ कार बा तमाम रसीद
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
पायो लिख नव अख्खर कारेबातिन रौशन हुआ, निगाहें खुल गईं
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
गुफ़्त चू दीं रफ़्त चे जाए दिलस्त ।इश्क़-ए-तरसाज़ाद: कारे मुश्क़िलस्त ।।
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
हर कसे रा बहर-ए-कारे साख़्तंद।मैल-ए-आँ अंदर दिलश अंदाख़्तंद॥
मुनादी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे! वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहि ते कारे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(देखिए ऊपर आई हुई 74.7 विषयक टिप्पणी भी।) (24-25) 99.5 कोवंल कुटिल केस नग कारे।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
नीस्तश जुज़ इ’शक़ बा-ख़ुद बाख़्तन कारे दिगरअज़ ज़बान-ए-जुमल:-ए-ज़र्रात-ए-आ’लम मग़्रिबी
मयकश अकबराबादी
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कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
मारण हारा रे सतगुरु सुरा, ते प्रेमासन पुरा।।सुरत कमान सबद कारे भलका, मारी रे मन की छांह रे करका।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
झूला किन डारो रे अमरैयाँरैन अँधेरी। ताल किनारे। मुरला झिंगारे। बादल कारे
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
क़यामत-क़ामते, बाला-बलाए आफ़त-ए-जानेबुते ग़ारत-गर-ए-दीं सहर-कारे कर्द:-अम पैदा
अहमद फ़ाख़िर
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भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
शहर और राजधानी में आदमी बदल जाता है। कृष्ण काले हो गये। तो क्या वृन्दावन के