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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
उत्तर- बाज़ारी(272) कोह चे मी दारद,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(272) कोह चे मी दारद, मुसाफ़िर को क्या चाहिए? उत्तर- संग
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
हमी-गुरेख़्तम अज़ मर्दुमाँ ब-कोह-ओ-ब-दश्तकि अज़ ख़ुदाए न-बूदम ब-दीगरे पर्दाख़्त
एजाज़ हुसैन ख़ान
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सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
उ’म्र भर ऐ’श की घड़ियों को गुज़ारे कोईदफ़्अ ’तन कोह-ए-मुसीबत को वो क्यों कर काटे
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
महरि! ऐसे सुभग सुत सो इतौ कोह निवारि। कोटि चंद वारौं मुख-छबि पर, ए है साहु, कि चोर।।
सम्मेलन पत्रिका
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तज़्किरा हज़रत शाह तसद्दुक़ अ’ली असद
मौज-ए-क़ुलज़ुम है यही कोह-ओ-बयाबाँ है यहीदुर्र-ए-यकता है यही ला’ल-ए-बदख़्शाँ है यही
इल्तिफ़ात अमजदी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर ख़्वाजा रुकनुद्दीन इश्क़
सुर्मा-ए-वह्दत जो खींचा इ'श्क़ ने आँखों के बीचजौन सा पत्थर नज़र आया वो कोह-ए-तूर था
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
बातिनी-ओ-रूहानी ता’लीम अबुल फ़ज़्ल मोहम्मद बिन अल हसन ख़तली से पाई, जो जुनैदिया सिलसिला में मुंसलिक
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
राजगीर की सहरा-नवर्दी के ज़माना में दामन-ए-कोह के पास एक शख़्स खाना खा रहा था। उसके
सूफ़ीनामा आर्काइव
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सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
क़स्बा-ए-सख़ी सरवरक़स्बा-ए-सख़ी सरवर जहाँ हज़रत का मज़ार है और जो हज़रत ही के नाम पर मशहूर
सूफ़ी
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बाबा फ़रीद शकर गंज
जब सय्याह अ’स्र के वक़्त जाते हैं और आहिस्ता-आहिस्ता वही सूरज जिसकी तरफ़ आँख भर कर
निज़ाम उल मशायख़
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सय्यिद सालार मस्ऊद ग़ाज़ी
जब सिपह-सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी की उ’म्र क़रीब साढे़ चार साल की हुई तो सय्यिद इब्राहीम की