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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
कि बिह अस्त शर्म-ए-इ’स्याँ ज़े-ग़ुरूर-ए-बे-गुनाहीदोहा:
ज़माना
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
गर हर्फ़-ए-बे-नियाज़ी सरज़द नियाज़ से होपुत्ले में ख़ाक के है प्यारे ग़ुरूर तेरा
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
रोज़-ए- दीगर कीं जहान-ए-पुर ग़ुरूर ।शुद चूं बहर अज़ चश्म-ए-ख़ुर ग़र्क़-ए-नूर ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
जो ग़ुरूर इस पर करे फ़िरऔ’न है शद्दाद है॥इस जहाँ पर रंज-ओ-राहत का नहीं कुछ ए’तबार।
मुनादी
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सतगुरू नानक साहिब
ज़ुल्फ़-ओ-पलक की बातों में नूर-ए-दीदा को आगे बढ़ने की फ़ुर्सत मिली और उसने नानक बाबा की
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
तजल्लीः-जब सालिक का दिल आइना की तरह साफ़ होता है तो नूर तजल्ली की शान में
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
ख़्वाजा-ए-ख़्वाज-गान ने अपने चहेते मुरीद को दिल्ली ही में ठहरने का हुक्म दिया और फ़रमाया ले
ख़्वाजा हसन सानी
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हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
नाम सय्यद दाऊद हुसैन, लक़ब सय्यद ज़ैनुद्दीन और वतन शीराज़ था।शीराज़ से देहली आए और देहली