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सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
सख्त बहुत औ खूब चमक, सूरत उसकी जैसे निभक। चातुर हो तो जान जाय, मूरख हो तो उसको खाय।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
हो सवार अपने बुराक़ पर, गए जैसे बिजली चमक गयीबलग़-अल-उ’ला बि-कमालिही ,कशफ़द-दुजा बि-जमालिही
सुमन मिश्र
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हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब "बह्र-उल-हयात"
जब कोई शख़्स पूरी दुनिया को एक नुक़्ता की शक्ल में देखने और तमाम आ’लम को
सुमन मिश्र
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
चुनाँचे यही हुआ |जब आप अजोधन पहुँचे और ये बुध का दिन था। अगर राहतुल-क़ुलूब को
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
गाँव के लोग सीधा सोचते हैं। सरल मन, सरल वचन। जो सोचते हैं, वही कहते हैं,
सूरदास : विविध संदर्भों में
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पदमावत की लिपि तथा रचना-काल- श्रीचंद्रबली पांडेय, एम. ए., काशी
जायसी की ओर ध्यान जाते ही उनसे परिचित होने की कामना हृदय में हलचल मचा देती
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
ख़ैर दरगाह शरीफ़ तो क़रीब ही थी लोग दस बजे पंखा चढ़ा कर फ़ारिग़ हो गए
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
उसके अनंतर शुक्रवार पहली फरवरी 1633 तक किसी प्रकार का भी उत्सव न मनाया गया। हाँ,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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अभागा दारा शुकोह
उसके अनंतर शुक्रवार पहली फरवरी 1633 तक किसी प्रकार का भी उत्सव न मनाया गया। हाँ,