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सूफ़ी लेख
मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
कौतुक कथा रचुं चित साह, जो जे काज पढे चित साह। साम दाम बुद्धि भेद जों आई, बहतु रस सनगार बनाई।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
विरह उठै घनघोर।चित चातृक ह्वै दादुर बोलै,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
दोहा रही पकरि पाटी सुरिस, भरे भौंह चित नैन।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
अन भंगर जे नावत खाना। चंचल चित वाहां रे डराबी।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
– बर्छी(59) उज्जल बरन अधीन तन, एक चित दो ध्यान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-बर्छी (59) उज्जल बरन अधीन तन, एक चित दो ध्यान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
20 मोहन चित काचो रहेली 4 सोरठ21 कासों होरी षेलिये 5 होली नाधासिर
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ - याज्ञिकत्रय
बसुधा की बम करी मधुरता, सुधा-पगी बतरानि।चढ़ी रहै चित हर बिसाल की, मुक्तमाल लहरानि।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
सो अब अनवर-चंद्रिका सब कौ करै प्रकास।।12।। देखै अनवर-चंद्रिका पोथी जो चित लाइ।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किंवदंतियाँ- याज्ञिकत्रय
बसुधा की बम करी मधुरता, सुधा-पगी बतरानि। चढ़ी रहै चित हर बिसाल की, मुक्तमाल लहरानि।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
जल में सिंध जु घर करै, मछली चढ़ै खजूरि सुरति ढीकुली, लेज ल्यौ, मन चित ढोलन हार
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
जेहि गावत नारद शारदादि पार कोई ना लहे। सोई भेद सतगुरु गावही कोई संत ज्ञानी चित गहे।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
धौरी पंडुक कहु पिय ठाऊँ। जौं चित रोख न दोसर नाऊँ।4 जाहि बया गहि पिय कँठ लवा। करै मेराउ सोई गौरवा।5
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
कस जाइये रे घर लागो रंग। मेरा चित न चलै मन भयो पंग।। एक दिवस मन गई उमंग। घसि चंदन चोआ बहु सुगंध।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
3. विशेषण का भद्दा प्रयोगः देव की रचनाओं में लाला जी ने कुछ भद्दे विशेषणो के