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सूफ़ी लेख
सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
जानत न जाने कहा बाकी टेक टरेगी। पाप को समूह सबै जात खेम जर जात,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
तात मात उच्चरत सात सुप आस नही फिरि। देव षात छिपि जात तजे तन जात बसी गिरि।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चातुर हो तो जान ले, मेरी जात गँवार।।-कुम्हार
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चातुर हो तो जान ले, मेरी जात गँवार।। -कुम्हार
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
पृथीसिंह महाराज को शुभचिंतक गुन ग्रांम।। न्यात जात व्यवहार में मगनीराम कहात
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
घूँघलीमलआईसजी आवो धाबा आवत जात बहुत जग ढीठा कछू न चढ़िया हाथं।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चन्दायन - डॉ. विश्वनाथ प्रसाद
हम फिन देखे न्याव न पार नहीं, पूछै तुमरी बात।। जात अहीर हम लोरिक नानू
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
देस के दिनेस के गनेस सब काँपत है, सेस के सहस फन फैलि-फैलि जात हैं।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
कत हो कान्ह! काहु के जात। ये सब ढीठ गरब गोरस के, मुख संभार बोलत नहिं बात।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
जौ कहुँ सुनत हमारी चरचा चालत हीं चपि जात। सुरभी लिखत चित्र की रेखा, सोचै हू सकुचात।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
कहे चकोर, मुख-बिंधु बिनु जीवन, भँवर न, तहँ उड़ि जात। हरिमुख-कमलकोस बिछुरे तें ठाले क्यों ठहरात?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर का वात्सल्य-चित्रण, डॉक्टर सोम शेखर सोम
मोसौं कहत मोल कौ लीनो तोहि जसुमति कब जायौ।।कहा करौं इहि रिस के मारैं खेलन हौं नहिं जात।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
गाढ़ परे कपि सुमिरा तोहीं। होहु दयाल देहु जस मोहीं।। लंका कोट समुंदर खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
भाजै जात मरन जौ होय, मोसौ कहा कहै सब कोय। जौ भजिजै लरिजै गुन देखि, दुहूँ, भाँति मरिबोई लेखि।