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सूफ़ी लेख
जिन नैनन में पी बसे दूजा कौन समाय
इन कहानियों के बीच शुरूआती पांच दिन निकल गए और पांचवे दिन अचानक खाँसी बढ़ गई
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
52 जिन षोजा जिन पाया मेरा प्रभु 3 बिहाग वा ख्याल53 हरिजी दुनियाँ क्यों विसराई 5 बिहागडा
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
धनि सतगुरु जिन दिया लखाय।।3।।धरमदास बिनवै करजोरी,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
फ़ारसी लिपि में हिंदी पुस्तकें- श्रीयुत भगवतदयाल वर्मा, एम. ए.
बादशाह के पूर्व-पुरूष जिन पुरखन के बंस मे, उपज्यो साहजहान।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
नरहरि सहजै जिन जाना। 3. रसना रसहि विचारिये, सारंग श्रीरंग धार रे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
उर अंबुज भामर प्रभु, चित्त चकोर जिन चंद।।10।। अलि हुवैं ऊलि इलिका, सगत सागति सुदेत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
तहँ कोबिद सुभ ए लिखे भिन्न भिन्न अधिकार। देखते ही कछु समुझियै जिन तैं अरथ-बिचार।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
बनत माल की डाल जाल जिन मैं छिपि जाहीं। दुप बिसाल बेहाल काल तिहिं सषि मग नाहीं।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
मुझ ख़स्ता-दिल की ईद का क्या पूछना हुज़ूरजिन के गले से आप मिले उन की ईद है
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।तुलसी भी कथा के आरम्भ करने से पूर्व गुरु की वन्दना करत हैं-