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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
गुहैं ठौर की ठौर तैं लर मैं होति बिसेषि।। सतरह सै एकासिया अगहन पाँचैं सेत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
तथा अलखनाम जाको ठौर न कतहूँ, क्यों न कहो समुझाई।। -पद, 9
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
प्रेम और मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति काव्य- दामिनी उत्तम, एम. ए.
मोको तो भावतौ ठौर प्यारे के बैननि में, प्यारो भयो चाहै मेरे नैननि के वारे।।
सम्मेलन पत्रिका
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बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
सास्त्र अरथ अच्छिर अरथ सो कीजै इक ठौर।।25।। अलंकार अर अर्थ जहँ सो उपजै अधिकाय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
ऐसी वस्तु अनूपम, मधुकर! मरम न जानै और। ब्रजवासिन के नाहिं काम की, तुम्हारे ही है ठौर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
यह सुनि बोल्यौ जादौ गौर, पहिलौ सौ अब नाहीं ठौर। फेरि अकब्बर के फरमान, कछवाहे सौ बैर निधान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
बाजिर कौन देस सौ नारी, ठौर कहउ बरु तुमहि बिचारी। करन कहउ औ लखन बिसेखी, अछरी रूप सो तिरिया देखी।।