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सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
ना जेई प्रेम औटि एक भएऊ। ना जेहि हिये माँझ डर गएऊ।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अलाउल की पदमावती- वासुदेव शरण अग्रवाल- Ank-1, 1956
बनखँड बिरिख रहा नहिं कोई। कवन डर जेहि लागि न रोई।। एक बाट गइ हिरदे दोसर गई महोब।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
अलाउल की पद्मावती - वासुदेव शरण अग्रवाल
कोयल जैस फिरौं सब रूखा। पिउ पिउ करत जीभ मोर सूखा।।बनखँड बिरिख रहा नहिं कोई। कवन डर जेहि लागि न रोई।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
यह शे’र सुनकर ख़्वाजा साहब पर एक अजीब सी कैफ़ियत तारी हुई और इसी कैफ़ियत मे
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
यह शे’र सुनकर ख़्वाजा साहब पर एक अजीब सी कैफ़ियत तारी हुई और इसी कैफ़ियत मे
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
ग्वालिनि डराति जिपहिं, सुनै जनि जसोवै।। इसी को कहते हैं चोरी और सीना जोरी। बेचारी गोपी डर
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़्दूमा बीबी कमाल, काको
आपकी मिर्ती की तारीख़ नहीं मिलती। इतिहास-कार का क़याल है कि आपकी मिर्त्ति तक़रीबन 1290 से
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
Krishna as a symbol in Sufism
सूफ़ियों की समा में श्याम रंगभारत में इस्लाम केवल मुसल्लह ग़ाज़ियों के ज़रिये ही नहीं बल्कि
बलराम शुक्ल
सूफ़ी लेख
अल्बेरूनी -प्रोफ़ेसर मुहम्मद हबीब
मुस्लिम जगत पर दृष्टि डालते हुए उसे इस बात का विश्वास हो गया था कि मुसल्मानों
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सन्यासी फ़क़ीर आंदोलन – भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम
इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाले मलंग दीवानगान-ए-आतिशी से बावस्ता थे ।यह सिलसिला मदारिया की एक
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
वास्तव में आज़मशाही क्रम जौनपुर-निवासी हरजू कवि ने आज़मशाह के प्रांताधिपति आज़मखाँ के निमित्त, जो कि
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जिन नैनन में पी बसे दूजा कौन समाय
हज़रत ने फरमाया- तुम अभी जवान हो। तुम्हें हमेशा अपने आप को गर्व और मिथ्याभिमान से
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
ग्रामोफ़ोन क़व्वाली
शुरुआती वर्षों में रिकॉर्डिंग पीतल के हॉर्न की सहायता से की जाती थीं और कलाकारों को
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
सूर के भ्रमर-गीत की दार्शनिक पृष्ठभूमि, डॉक्टर आदर्श सक्सेना
इस प्रकार मोटे तौर पर सूर के भ्रमरगीत में भागवत का आधार दिखाई देता है, परन्तु