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सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
तकब्बुर-ओ-अनानियत से बचने और ख़ाकसारी की कैसी दिल-फ़रेब तलक़ीन फ़रमाते हैं।तीनत आदम की ख़ाकसारी है।
मुनादी
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दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
हफ़्तुम: पशेमानी सख़ावत को खा जाती है।हश्तुमः तकब्बुर ’इल्म को खा लेता है।
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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सतगुरू नानक साहिब
नानक आदमी थे और शक्ल-ए-तअ’य्युन में तमाम ज़रूरियात-ए-आदमियत में मशग़ूल नज़र आते थे मगर उनकी आँख
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
वो कम बोलता हो, ताकि दिल में मशग़ूल रहे, और कम खाता हो ताकि फ़िक्र जारी