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सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
चोखा म्हणे याचा न धरी भरवसा. जाईल हा देह वावुगाचि उगा
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
कलि का स्वामी लोभिया, मनसा धरी बधाइ। दैहिं पईसा ब्याज कौं, लेखां करता जाइ।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
गोस्वामी तुलसीदास भी ऐसा ही कहते है-----तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।अब तो दादुर बोलि है, हमें पूछिहैं कौन।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
प्रारस सुगुरु परमेश्वरु लोह हेम कर लेते।।11।। ज्ञान ज्योति सुप्रकास गुरु कर धरी सासत्र कत्थ।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
दो मधूकरी हो खाने को, मदिरा हो मनमानी जो, पास धरी हो मर्मकाव्य की पुस्तक फटी-पुरानी जो,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(48) उज्जल अति वह मोती बरनी। पाई कंत दिए मोहि धरनी।।जहां धरी थी वहां न पाई। हाट बजार सभी ढूंढ आई।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(48) उज्जल अति वह मोती बरनी। पाई कंत दिए मोहि धरनी।। जहां धरी थी वहां न पाई। हाट बजार सभी ढूंढ आई।।