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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-बर्रे का छाता(65) श्यामबरन पीतांबर काँधे, मुरली धरे न होय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-बर्रे का छाता (65) श्यामबरन पीतांबर काँधे, मुरली धरे न होय।
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बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
सबको समत लहि करत मनीराम सुविवेक।।31।। अलंकार प्राचीन कवि दुहुन धरे सुषदाय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
अपने नहिं पठवत नँदनंदन हमरेउ फेरि धरे।। मसि खूँटी, कागर जल भीजे, शर दव लागि जरे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
ब्रह्म होय आनँद लहै, संक्या रहै न कोय।।30।।हरि तौ पूरन येक है, धरे रूप अनन्त।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
जैसे हरिया लगत लकरी, सो भोमी पाउ न धरे। सुरा बांधी रन चडे तोहु, मरन से न डरे।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
षट रस धरे छांड़ि, कत पर-घर चोरी करि-करि खात।। बकत-बकत तोसो पचिहारी, नैकुहु लाज न आई।
सम्मेलन पत्रिका
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अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
जूझि सेख भूतल पर परे, नैकु ने पग पीछे कौ धरे।शेख़ का अंत हो गया और साथ ही युद्ध का भी। फलतः-----
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
अम्माँ, उड़ो जामुन घुले धरेअम्माँ , मैं नहीं खाती मेरी माँ
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
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संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
देवाधिदेव शिरोमणि जिस मनोहर पिया की वे चर्चा करते हैं, उससे उनका निजी भाव कांताभाव है।