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सूफ़ी लेख
संतों के लोकगीत- डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम.ए., पी-एच.डी.
केहि विधि ससुरे जाव मोरी सजनी बिरहा जोर जनावै।
विषैरस नाच नचावै।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेष।
घट घट अबिनासी बसै, सुनहु तकी तुम सेष।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर और शेख़ तक़ी सुहरवर्दी
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेख
घट घट अविनाशी अहै, सुनहु तक़ी तुम सेख .
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेष।
घट घट अबिनासी बसै, सुनहु तकी तुम सेष।।
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
सहम गई नहि सकी पुकार। ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।।
(149) आँख चलावे भौं मटकावे। नाच कूद के खेल खिलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
सहम गई नहि सकी पुकार। ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।।
(149) आँख चलावे भौं मटकावे। नाच कूद के खेल खिलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
अब आ गई लंका। विषम-संग्राम- घोर छल और बल- दारुण घमासान। अवतार भी परीक्षा देता है
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा
यह उत्तर सुनकर गोर फूलांदे को धीरज बंधा कर आगे चल पड़ा। आगे गोर को मरामण
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
बाल्य काल और यौवन काल कितने मनोंहर हैं। उनके बीच की नाना मनोरम परिस्थितियों के विशद
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चन्दायन - डॉ. विश्वनाथ प्रसाद
मनेर शरीफ़ से अभी हाल में अपने मित्र प्रो, हसन असकरी की कृपा से मुझे चन्दायन
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
भला इस जुलूस को देखो और पंखे को देखो। बाँस की खिंचियों का बड़ा सा पंखा