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पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
नाम-ओ-नसब (पीरान-ए-पीर पर मबनी किताब)इमाम अबू हनीफ़ा और उनका तर्ज़-ए-इस्तिदलाल (उर्दू मज़ामीन)
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली एक ताल का नाम भी
समा’अ में अगर नग़्मा की बा-ज़ाबतगी हो तो वो समा’अ से ख़ारिज हो जाता है। नग़्मा
अकमल हैदराबादी
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क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद उ’स्मानी जौनपूरी
नाम-ओ-नसब और आबाई वतन: मुहम्मद रशीद नाम, शम्सुलहक़, फ़य्याज़ और दीवान लक़ब है, अबुल बरकात कुनिय्यत
हबीबुर्रहमान आज़मी
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क़व्वाली की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा
किसी फ़न की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा के बारे में क़लम उठाना उस वक़्त आसान होता है जबकि हम
अकमल हैदराबादी
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
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क़व्वाली के क़दीम-ओ-जदीद मुक़ाबले
क़व्वाली के मुक़ाबलों : क़व्वाली के फ़नकारों में मुक़ाबलों का रिवाज बहुत पुराना है लेकिन ज़माना-ए-क़दीम
अकमल हैदराबादी
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तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल
क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग न सिर्फ़ इस फ़न
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ
अकमल हैदराबादी
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की उ’म्र अभी 12-13 साल की थी और बदायूँ में मौलाना अ’लाउद्दीन उसूली
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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सय्यद शाह शैख़ अ’ली साँगड़े सुल्तान-ओ-मुश्किल-आसाँ - मोहम्मद अहमद मुहीउद्दीन सई’द सरवरी
है रहमत-ए-ख़ुदा करम-ए-औलिया का नाम ज़िल्ल-ए-ख़ुदा है साया-ए-दामान-ए-औलियानाम,नसब-ओ-पैदाइश: