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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नौकर क्यों न रखा?उत्तर- ज़ामिन न था।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नौकर क्यों न रखा? उत्तर- ज़ामिन न था।(234) सितार क्यों न बजा,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
जितने नौकर हैं वो छूटे कि हुए बस कंगालये हुनर वो है कि जिसको कभी आए न ज़वाल
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
ओरगाना का अर्थ डॉ. अग्रवाल ने अधिपति किया है। ओरग<ओलग्ग<अब-लागू, सेवा करना, चाकरी करना है। (पाइअ
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
आपकी आबाई हवेलीअयोध्या में आपके ख़ानदान की बहुत हुरमत-ओ-अदब था और आपके वालिद-और दादा जान पश्मीना
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
मियाँ दौलाः-पुराने ज़माने में दस्तूर था और बा’ज़ देहात और गाँव में अब तक भी ये
सूफ़ी
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
भक्ति की पराकाष्ठा स्त्री ही के हृदय में मिलेगी पुरुष के नहीं। उतना समर्पण वही कर
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
मोह- कबीरपंथी साहित्य में मोह को अत्यंत दुख-प्रद तत्व स्वीकार किया गया है। भवसागर में डूबने का
हिंदुस्तानी पत्रिका
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गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
इधर गुजरात में सूफ़ी कवियों का जो विपुल साहित्य क़ुतुबखानों और मसज़िदों में देखने में आया
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
चंगेज़ ख़ान और उसकी औलाद की सल्तनत में ये अ’जीब बात थी कि उसकी सल्तनत में
एजाज़ हुसैन ख़ान
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Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को यह जवाब सुनकर अपने पुराने दिन याद आ गए जब वह अपनी
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
मुरली देखकर लजाते हैं। मुरली गाँव और गोचारण की उन्मुक्तता की प्रतीक है। सिंहासन बैठा राजा
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
मसनवी की कहानियाँ -3
जब उजाला फैल गया तो ख़ादिम आया और झटपट पालान को सरका कर उस की पीठ
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
मलिक जीवन के यहाँ दो दिन रहने के बाद 9 जून 1659 को प्रातः- काल दारा
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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अभागा दारा शुकोह
मलिक जीवन के यहाँ दो दिन रहने के बाद 9 जून 1659 को प्रातः- काल दारा