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सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
प्रथम उल्लास –(अपने-आप की पहचान)पहली किरण
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
चतुर्थ उल्लास (परलोक की पहचान)पहली किरण -परलोक का सामान्य परिचय
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
जिसने देखा तुझे अल्लाह को पहचान लियासिर्र-ए-तौहीद की मुस्बित है रिसालत तेरी
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
आस लगा रख पीत से रे उ’र्फ़ी अंजानमित्र-बचन की चाह बद शायद लें पहचान
ज़माना
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
यूँ मिलते हैं, जैसे ना कोई जान ना पहचानदानिस्ता ‘नसीर’ आज वो अंजान बहुत हैं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
न पहचान पाए तो इतना समझ लो ।शब-ए-हिज्र की फिर सहर भी न होगी ।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
मानूँ तुझे मैं अगर ले मुझे पहचान तूपूछे है हर इक से किसका है आ’शिक़ नियाज़
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की चौथी क़िस्त
तृतीय उल्लास (माया की पहचान)पहली किरण-संसार का स्वरूप, जीव के कार्य और उसका मुख्य प्रयोजन
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
नज़दीक है वो सबसे जहाँ उससे है मा’मूरजब चश्म खुली दिल की तो पहचान में आया
फ़ैज़ अली शाह
सूफ़ी लेख
लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
हाफ़िज़ ने सुल्तान की आवाज़ पहचान कर झट जवाब दिया।‘दर अ’ह्द-ए-पादशाह-ए-ख़ता-बख़्श-ओ-जुर्म-पोश’
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
एक बार नुसरत साहब नींद में एक घंटा गाते रहे।जब नींद खुली तो उन्होंने बताया कि
सुमन मिश्र
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Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
मुल्ला जामी ने उनसे उनका नाम पूछा और जमाली ने अपना नाम बता दिया. जमाली की
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
पद वही, - 5, गजै न मिनिऐ तोलि न तुलिऐ। पहजन सेर अढ़ाई। गजै न मिनिऐ
हिंदुस्तानी पत्रिका
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एकता का महत्व
नोटः- अब इस आयत से हमको ये दर्रस मिल रहा है कि ये आसमान-ओ-ज़मीं,तरह तरह की