आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "बहिश्त"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "बहिश्त"
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
गोइ आँ बुवद अज़ समरात-ए-बहिश्त।।साख़्तः दर आब कमानश मकीं।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
दरख़्ते कि तल्ख़स्त ऊ रा सरिश्तगरश दर निशानी ब-बाग़-ए-बहिश्त
ज़माना
सूफ़ी लेख
सय्यिद अमीर माह बहराइची
चूँ शुद मीर मह दर बहिश्त बुलंदब-तर्हील-ए-आँ शाह-ए-रौशन यक़ीन
जुनैद अहमद नूर
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
दोस्तर दारम मन ऐ आ’ली सरिश्त ।बा तू दर दोज़ख़ कि बे-तू दर बहिश्त ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
अ’ज़ाब चीस्त बगो ज़ाहिदा मुअ’ज़्ज़िब कीस्तबहिश्त-ओ-दोज़ख़-ओ-हम मुर्द:-ए-कफ़न हमः ऊस्त
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
बहिश्त ले के गई है फ़िज़ा मदीने सेना आएं जाके वहां से यही तमन्ना है
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हिंदुस्तान की तहज़ीब और सक़ाफ़त में अमीर ख़ुसरो की खिदमात
5- खमसए खुसरो की पांचवी और आखिरी मसनवी है हश्त- बहिश्त। इसमें 3382 शेर हैं।नस्र
क़ुर्बान अली
सूफ़ी लेख
हज़रत अ’लाउद्द्दीन अहमद साबिर कलियरी
बे-बर्ग-ओ-बे-नवाई सामाँ शुदस्त मा राअहमद बहिश्त-ओ-दोज़ख़ बर आ’शिकाँ हरामस्त
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
उस्ताद तो बहिश्त में हैं और हम हैं यहाँइस्लाह कौन दे ये ज़मीं आसमाँ पर नहीं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
कलाम-ए-‘हाफ़िज़’ और फ़ाल - मौलाना मोहम्मद मियाँ क़मर देहलवी
क़दम दरेग़ म-दार अज़ जनाज़ा-ए-‘हाफ़िज़’कि गर्चे ग़र्क़-ए-गुनाह अस्त मी-रवद ब-बहिश्त
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
तसव़्वुफ का अ’सरी मफ़्हूम - डॉक्टर मस्ऊ’द अनवर अ’लवी काकोरी
ता’अत में ता रहे न मय-ओ-अंगबीं की लाग।दोज़ख़ में डाल दे कोई लेकर बहिश्त को।।
मुनादी
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
ख़ुसरो से बढ़कर देहली के बारे में तो शायद ही किसी शाइ’र ने इतनी तफ़्सील से
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
ख़ानक़ाह के अंदर क़ब्र ज़मीन से चंद फुट ऊंची है जिसके पास सिर्फ़ एक मद्धम सा
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से - मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी
ख़ालिक़-बारी का नाम भी आज के लड़कों ने न सुना होगा। कल के बूढ़ों के दिल
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
जिसने पहले ज़माना का झरना नहीं देखा उसने दिल्ली में कुछ ख़ाक नहीं देखा। मा’लूम होता