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सूफ़ी लेख
हकीम शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी
हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान, बंगला देश और सात समुंदर पार दूसरे देशों में हज़रत मख़दूम मोहम्मद
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
सूफ़िया ने ऐसा कारनामा अंजाम दिया है कि आज भी उनकी ख़ानक़ाहें और आस्ताने बंदगान ए
रय्यान अबुलउलाई
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शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
शाह ‘अकबर’ दानापुरी की शाइ’री उनकी हुब्बुल-वतनी में डूबी हुई ख़्वाहिश का इज़हार है। आपने क़ौमी
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा
किसी फ़न की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा के बारे में क़लम उठाना उस वक़्त आसान होता है जबकि हम
अकमल हैदराबादी
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
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क़व्वाली के क़दीम-ओ-जदीद मुक़ाबले
क़व्वाली के मुक़ाबलों : क़व्वाली के फ़नकारों में मुक़ाबलों का रिवाज बहुत पुराना है लेकिन ज़माना-ए-क़दीम
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल
क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग न सिर्फ़ इस फ़न
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ
अकमल हैदराबादी
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की उ’म्र अभी 12-13 साल की थी और बदायूँ में मौलाना अ’लाउद्दीन उसूली