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सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
सब तपिश तब पुकारे।एक दुरस्ती दरस भूले,
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
नामदेव भूले तुम जैसे, हमको मति जानहु तुम तैसे।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी
मैं तो मोहसिन इसी क़ाबिल हूँ कि भूले वो मुझे(कुल्लियात-ए-मोहसिन)
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
बैरिनु की बर बाल लाल तजि कै तन तूले। टूटी माल प्रवाल भाल के भूपन भूले।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
ना वो भूले से इनायत की नज़र करते हैंमेरे नाले नहीं अफ़सोस असर करते हैं
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
कबीर साहब और विभिन्न धार्मिक मत- श्री परशुराम चतुर्वेदी
इक कुल देव्यां कौ जपहि जाप, त्रिभवनपति भूले त्रिविध ताप।।अंनहि छाड़ि इक पीवहि दूध, इत्यादि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
जब जानो मोहन को देखे, सुध-बुध ना भूले तो सहीमाखन दूध भुलाए ग्वालिन, लागे पुकारे दही दही
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
बलाओं से न हो मुठभेड़ सारी मुश्किलें हल होंन भूले नाम-ए-हक़ इन्साँ अगर आराम पाने पर
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
जब जानो मोहन को देखे, सुध-बुध ना भूले तो सहीमाखन दूध भुलाए ग्वालिन, लागे पुकारे दही दही
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
इस जीव का जो शुद्ध स्वरूप है- इसका जो वास्तविक स्वभाव है उसका धर्मशास्त्रों ने स्पष्ट
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
परहित द्रवै सो संत पुनीता।अतः संत का लक्षण विश्वकरुणा अथवा भूतदया से अभिभूत होना है, न
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
इस खेल ही खेल में इतनी बड़ी बात पैदा हो गई है, जिसे प्रेम कहते हैं।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
(ग) मीरा ने भगवान के स्वरूप का कैसा वर्णन किया है? उसकी दृष्टि अमरीका की अख़बारी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
नागर सिंधु सभ्यता के बावजूद भारतीय नगरी नहीं ग्रामीण है। पूरा भारतीय साहित्य गाँव उन्मुख हैं।