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फुलवारी की ख़नाकाह और सज्जादा-ओ-सिलसिला-ए-हज़रत ताजुल-आ’रिफ़ीन आ’फ़्ताब-ए-तरीक़त मख़दूम शाह मोहम्मद मुजीबुल्लाह क़ादरी क़लंदर फुलवारवी की ज़ात-ए-बा-बरकात
शे’र-गोई में मुँह न देखा किसी उस्ताद कामगर ब-क़ौल-ए-मुस्लिम शो’रा-ए-बिहार कि मशहूर है कि हज़रत सय्यद शाह अमीनुद्दीन अहमद मा’रूफ़ जनाब हुज़ूर सज्जादा-नशीं ख़ानक़ाह-ए-मख़्दूमुल मुल्क बिहारी जब कोई कलाम फ़ारसी में तहरीर फ़रमाते तो सबसे पहले हज़रत (सय्यद शाह अब्दुल करीम) रुक्न देखने को देते जिनसे जनाब हुज़ूर क़ुदस सिरा के ताल्लुक़ात और मरासिम ख़ास अलख़ास थे.
चश्म-ए-नानक कुर्रा-ए-शम्सी थी जिसकी कशिश पर निज़ाम-ए-आ’लम का क़रार नज़र आता है।उसमें जादू था जो लोगों को बे-ख़ुद कर देता था।उस में ख़ुनकी थी जिससे अर्वाह तसल्ली पाती थीं।नानक फ़ितरत-ए-इलाही की आँख के तारा थे जिसमें नूर-ए-मोहम्मदी जल्वा-फ़गन था।यही वजह थी कि उन्होंने रसूल-ए-अ’रब सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम की तरह ग़ैर-ए-ख़ुदा की परस्तिश से इंकार किया और मरासिम-ए-जिहालत को तोड़ डाला और काएनात के हर ज़र्रा को नज़र-ए-तौहीद से देखा।
इस्म-ए-गिरामी मोहम्मद था, मगर हमीदुद्दीन के नाम से मशहूर थे। इनके वालिद हज़रत अ’ताउल्लाह महमूद अत्ताजिरी,
ग़ायत-ए-तवाज़ो’ में अपनी ता’ज़ीम-ओ-तकरीम पसंद नहीं फ़रमाते थे।एक बार ख़ानक़ाह में कुछ मुरीद हौज़ के किनारे
हज़रत अमजद हुसैन नक़्शबंदी के तअल्लुक़ात मुआसिर उलमा ओ मशाइख़ से निहायत दिल नशीन थे। बुलंद
आपकी दुख़्तर बीबी रऊफ़न ज़ौजा शाह मोहम्मद या’क़ूब बल्ख़ी हुईं। शाह अ’ब्दुल-वहीद मुहीउद्दीनपुरी का इंतिक़ाल हैदराबाद
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