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सूफ़ी लेख
"है शहर-ए-बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम"
महसूस यूँ हुआ कि हम जन्नत में आ गएकैसी है देखो आज फ़ज़ा कुछ न पूछिए
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
मैकश अकबराबादी
आपके इंतिक़ाल के बा’द यूँ महसूस होता है:‘जो हम न हों तो ये दुनिया मक़ाम-ए-हू सी है
शशि टंडन
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
हक़-तआ’ला जब किसी पर इ’नायत करता है तो पहले उस पर अपने जलाल का क़हर नाज़िल
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
सतगुरू नानक साहिब
जिस्म की नज़र आने वाली आँख तस्वीर खींचने का कैमरा है,रास्ता दिखाने का वसीला है लेकिन
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत सय्यदना अमीर अबुल उला
”मैं उस वक़्त ख़िदमत में हाज़िर था लेकिन रात-भर जागने की वजह से कुछ ग़ुनूदगी थी
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
कोऊ आई सुघर पनिहारया’नी कोई सुघर सलीक़े वाली पनिहारी (पानी भरने वाली) आई है। जब ही
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
वेदान्त - मैकश अकबराबादी
शंकर के नज़दीक सूरत-ए-आ’लम माया या’नी इल्तिबास और धोका है।न उसे नीस्त कह सकते हैं और