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सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद के मुर्शिद और चिश्ती उसूल-ए-ता’लीम-प्रोफ़ेसर प्रीतम सिंह
चूँकि सिलसिला-ए-ता’लीम मुद्दतुल-उ’म्र जारी रहता था इसलिए जब मुरीद का मुर्शिद से रिश्ता क़ाएम हो जाता
मुनादी
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
पेश-ए-सियादत-ए-ग़मत रूह चे नुत्क़ मी-ज़नदउस शे’र को बार बार पढ़ते रहे और बे-ख़ुदी सी तारी हो
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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शैख़ सलीम चिश्ती
आ’रिफ़-ए-बे-नज़ीर शैख़ सलीममुर्शिद-ओ-रहनुमा-ए-हफ़्त-इक़्लीम
ख़्वाजा हसन निज़ामी
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
साक़िया मुर्शिद-ए-कामिल है हमारा रिंदोंमय-ए-वहदत से है लबरेज़ हमारी गागर
उमैर हुसामी
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ख़्वाजा मीर दर्द और उनका जीवन
हम बदर-ए-मुनीर ख़्वाजा मीर ‘दर्द’ अस्तहम मुर्शिद-ओ-पीर ख़्वाजा मीर ‘दर्द’ अस्त
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
पीर-ओ-मुर्शिद आपका भी क्या ज़माना हो गयादीदा-ए-दूं का नया कुछ कारख़ाना हो गया
सुमन मिश्रा
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हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
समाअ से पहले तश्तरी में मुरीद अपने मुर्शिद का जोड़ा लाते हैं। एक तश्तरी में रुमाल,
सुमन मिश्रा
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आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
वक़्त-ए-रुख़्सत ये सुख़न मुर्शिद मुझे फ़रमा गयाहर किसी को अहल-ए-आ’लम बीच है जाए-पनाह