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सूफ़ी लेख
तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
इसी से ये इ’ल्म होता है कि बेशतर वारदात उस ज़माने की हैं जब हज़रत का
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया सुहरावर्दी रहमतुल्लाह अ’लैह
-दूसरे मौक़ा’ पर अपने मुरीद को नसीहत फ़रमाते हैं, कि तुम अल्लाह तआ’ला के ज़िक्र को
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
हज़रत ख़्वाजा शैख़ कबीर फ़रीदुद्दीन मसऊ’द गंज शकर रहमतुल्लाहि अ’लैहि से पूछा गया कि समाअ’ में
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी
(2)रिसाला-ए-महविया- ये एक मुख़्तसर रिसाला है। जैसा कि इस के नाम से ज़ाहिर है इस में
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
बुलंद दर्जे की शाइ’री उस वक़्त मा’रज़-ए-वजूद में आई है जब इन्सानी दिमाग़ हयात के उन
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आ’रिफ़ रहमतुल्लाह अ’लैह
एक दूसरे मौक़ा’ पर मुरीदों को नसीहत की, कि कोई साँस ज़िक्र के ब-ग़ैर बाहर न
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
फ़रमाते हैं कि नफ़्स की मुख़ालफ़त तमाम इ’बादतों का सर-चश्मा है।नफ़्स को न पहचानना अपने को
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
दूल्हा और दुल्हन का आरिफ़ाना तसव्वुर
बुल्ले शाह के इस गीत में होरी(होली) घुंघट(घूँघट) जैसे लफ़्ज़ों के साथ “होरी खेलूँगी कह बिस्मिल्लाह”
शमीम तारिक़
सूफ़ी लेख
सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
हम भूके हैं, नंगे हैं इसलिए हमारे नज़दीक इस्लाम की ता’लीम ये है कि ख़ूब मेहनत