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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
गुफ़्त कू मेहराब-ए-आँ रू-ए-निगार ।ता न-बाशद जुज़ नमाज़म हेच कार ।।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
ख़िदमत-ए-अक़दस में ऐ मेहराब –ए- दिल के पेश इमामलाये हैं नज़राना –ए- एहराम यह तेरे ग़ुलाम
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
मिसाल-ए-लाला ब-कफ़ जब से हमने जाम लियासनम को देख के मेहराब-ए-अब्रू-ए-ख़म-दार
फ़ैज़ अली शाह
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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
मेहराब-ए-ग़म-ए-अबरू-ए-दिल-दार से कह दोमैं इ’श्क़ की मिल्लत में हूँ ऐ शैख़-ओ-बरहमन
मयकश अकबराबादी
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दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
विर्द-ओ-वज़ीफ़ाः आप फ़रमाते हैं कि “अल्लाह तआ’ला के असमा-ए-हसना में से इस्म या-हबीबु और या-लतीफ़ु के
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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याद रखना फ़साना हैं ये लोग - डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ख़ाँ
हम आवाज़-ए-जरस की तर्ह से तन्हा भटकते हैं।।एक और चीज़ जिसने ज़फ़र को मक़्बूल-ओ-महबूब बनाया वो
मुनादी
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बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
जंगली महल अब तो वाक़िई जंगली महल है। हाँ किसी ज़माना में बड़ा गद्दार महल था।