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सूफ़ी लेख
हज़रत मख़्दूम दरवेश अशरफ़ी चिश्ती बीथवी
दरगाह शरीफ़ से शिमाल की जानिब तक़रीबन एक किलोमीटर की दूरी पर मुबारकपुर ’उर्फ़ गन्नू बीघा
मुनीर क़मर
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हज़रत शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती
शाह फ़रीदुद्दीन अहमद चिश्ती ने अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दौर में भी ख़ुद्दारी और आज़ाद-मिज़ाजी का
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
वफ़ात से पहले तीन साल तक मुसलसल अ’लील रहे, लेकिन अ’लालत के ज़माने में भी रुश्द-ओ-हिदायत
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री - डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग
“ख़ुदाया मैंने तेरी तमन्ना में सब कुछ तज दिया है और मुझे बस अब तेरी ही
फ़रोग़-ए-उर्दू
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Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
(मैं रूम से शाम तक सफ़र करता रहा मगर मेरे दिल को एक लम्हा आराम मयस्सर
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
शुद नक़्श हमः जान मुमस्सलबड़ी मुश्किल से शहर की तरफ़ मुराजअ’त करने के लिए रज़ा-मंद हुए।थोड़े