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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(167) लौंडी भेज उसे बुलवाया। नंगी होकर मैं लगवाया।।हमसे उससे हो गया मेल। ऐ सखी साजन ना सखी तेल।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(167) लौंडी भेज उसे बुलवाया। नंगी होकर मैं लगवाया।। हमसे उससे हो गया मेल। ऐ सखी साजन ना सखी तेल।।
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सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
आपकी शादीआप चूँकि सैलानी फ़क़ीर थे।एक जगह का मुस्तक़िल क़ियाम पसंद-ए-ख़ातिर न था।जब लोगों का हुजूम