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सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
कल जो तनके चलते थे अपनी शान–ओ–शौकत परशमा तक नही जलती आज उनकी क़ुरबत पर
सुमन मिश्रा
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
शान-ओ-शौकत और ही कुछ है मिरे दरबार कीक्यों ना हो काविश जिगर में क्यों ना हो दिल में ख़लिश
सुमन मिश्रा
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सय्यद शाह शैख़ अ’ली साँगड़े सुल्तान-ओ-मुश्किल-आसाँ - मोहम्मद अहमद मुहीउद्दीन सई’द सरवरी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
फ़िरदौसी दूसरे ईरानी शो’रा की तरह ग़ज़लें या आ’शिक़ाना नग़्मे नज़्म करता था। उसकी रगों में
ज़माना
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
और फिर फ़रमाया कि इन बातों की कुछ ज़रूरत नहीं।सिर्फ़ मौलाना का ख़त काफ़ी है।शम्स ने
ख़्वाजा हसन निज़ामी
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लखनऊ का सफ़रनामा
अब हम फ़ातिहा पढ़ कर फ़ारिग़ हुए तो सामने किंग जॉर्ज मेडीकल यूनीवर्सिटी नज़र आई।वाक़ि’ई इस
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा
किसी फ़न की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा के बारे में क़लम उठाना उस वक़्त आसान होता है जबकि हम
अकमल हैदराबादी
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
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क़व्वाली के क़दीम-ओ-जदीद मुक़ाबले
क़व्वाली के मुक़ाबलों : क़व्वाली के फ़नकारों में मुक़ाबलों का रिवाज बहुत पुराना है लेकिन ज़माना-ए-क़दीम
अकमल हैदराबादी
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तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल
क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग न सिर्फ़ इस फ़न
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ