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सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
सुख़न-फ़ह्मी सुख़न-गोई से भी मुश्किल है ऐ सालिकमिले क्या दाद ना-फ़ह्मों से शे’र अपने सुनाने पर
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
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शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
ये वाक़िआ’त इस ग़र्ज़ से लिखे जाते हैं ताकि नाज़िरीन समझ जाएं कि हज़रत शम्स रहमतुल्लाहि
ख़्वाजा हसन निज़ामी
सूफ़ी लेख
हज़रत ग़ौस ग्वालियरी और योग पर उनकी किताब "बह्र-उल-हयात"
खेचरी दम-बस्तन से इबारत है। इस में सालिक ज़बान के लिए हल्क़ के दरवाज़े को बंद
सुमन मिश्रा
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तल्क़ीन-ए-मुरीदीन-हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी
(वो जो कि कहते हैं ऐ हमारे रब हमारी बीवियों और हमारी ज़ुर्रियात-ओ-औलाद को हमारी आँखों
सूफ़ीनामा आर्काइव
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तज़्किरा हज़रत शाह तेग़ अली
कमाल–ए-शरीअ’त का नाम तरीक़त है। सबसे पहले जो गुनाह वुजूद में आया वो हसद है। सब्र–ओ-शुक्र
डॉ. शमीम मुनएमी
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हज़रत शैख़ अब्दुल-हक़ मुहद्दिस देहलवी
" वो छ: किताबें जो इस्लाम में मुक़र्रर –ओ- मशहूर हैं जिनको सिहाह-ए-सित्ता कहते हैं, उनके
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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सूफ़ी ‘तुराब’ के कान्ह कुँवर (अमृतरस की समीक्षा)
मौलाना जलालुद्दीन रूमी का कौल है कि सालिक (साधक) को या तो तरब नहीं तो तलब