परिणाम "सिपह-सालार"
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सिपह-सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी का ये बरताव न महज़ पोलिटिकल दानाई और दूर-अंदेशी पर मब्नी था बल्कि इससे उनकी ईमानदारी और इन्साफ़ का भी पता चलता है।लूट मार की उनकी ग़र्ज़ होती तो यक़ीनन बिला क़ीमत अदा किए हुए बहुत सा ग़ल्ला मयस्सर आ जाता।अल-ग़र्ज़ शा’बान 423 हिज्री जुलाई 1032 ई’स्वी में जब उनकी उ’म्र 18 साल की थी वो बहराइच रवाना हुए।(हयात-ए-मस्ऊ’दी, सफ़हा 116)सय्यिद ज़फ़र अहसन लिखते हैं:
ता ग़ुलाम-ए-शम्स-ए-तबरेज़ी न-शुदसिपह-सालार की रिवायत के मुवाफ़िक़ ये दोनों असहाब सलाहुद्दीन ज़रकोब के हुज्रे में छः
मैंने प्रोफ़ेसर श्री कान्त को लिखा कि वो मेहरबानी फ़रमा कर मुझे इत्तिलाअ’ फ़रमाएं कि टीपू
आपकी तसानीफ़ के सिलसिला में सिर्फ़ एक किताब “अल-मतलूब फ़ि-इ’श्क़िल-महबूब” नामी रिसाला का ज़िक्र मिलता है
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