आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "सोच"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "सोच"
सूफ़ी लेख
सूर की सामाजिक सोच, डॉक्टर रमेश चन्द्र सिंह
तब, सूर की सामाजिक सोच तक पहुँचने का रास्ता क्या है? सच पूछा जाये तो सीधा
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
खुसरू ने यह कही पहेली दिल में अपने सोच ज़री।।– छाता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
खुसरू ने यह कही पहेली दिल में अपने सोच ज़री।। -छाता
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
जैसे- सीत उष्ण सुख दुख नहिं मानै, हानि भए कछु सोच न राँचै।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
ऐ फ़रिश्तो सोच कर मद्दाह से करना सवालवर्ना मैं दूँगा दुहाई अहमद-ए-मुख़्तार की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
सबके सब उसके विषय में सोच करने लगे और सिर झुका कर बैठ गये।पन्द दादन्दश बसे सूदे न दाश्त ।
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
जब से देखी सुंदर नारि, तब से चाँद नहीं इतरावत। बढ़ के भया जु नाहीं उसने, सोच में वाके घटता जावत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
ब-साकिन दौलत अज़ गुफ़्तार ख़ेज़दआपने शायद उसी वक़्त से ये सोच लिया था कि अगर कभी
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
जब खु़सरो साहब ने मसनवी ‘लैला-मजनूँ’ लिखी है, उस वक्त इनकी पुत्री 7 वर्ष की थी।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
मोहब्बत की इस अबदियत को साबित कर के हज़रत गेसू दराज़ दा’वत दे रहे हैं।फ़रमाते हैं-ऐ
मुनादी
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह गंगा-जमुनी तहज़ीब और सूफ़ी संस्कृति का एक बुलंदतरीन मरकज़
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह गंगा-जमुनी तहज़ीब और सूफ़ी संस्कृति का एक बुलंदतरीन मरकज़
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी
(शाह नियाज़ बरेलवी)लेकिन अब मैं एक बेहतरीन इ’ल्म का मालिक हूँ जो किताबों के इ’ल्म से
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
कबीर और शेख़ तक़ी सुहरवर्दी
कबीर ने अन्य सूफ़ी संतों की तरह गृहस्थ आश्रम को प्राथमिकता दी और परिवार के साथ
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
निरंजनी साधु
निरंजनी साधुइनका पंथ भी संवत् 1600 के पीछे हरिदास जी से चला है। हरिदास को कोई