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सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
गोरी गोरी बैयां हरी हरी चूरियांबइयाँ पकड़ धर लीनी रे मोसे नैना मिलाय के ।
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
गोरी गोरी बैयां हरी हरी चूरियांबइयाँ पकड़ धर लीनी रे मोसे नैना मिलाय के ।
सुमन मिश्र
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
हरी डाल पै मैना बैठी, है कोइ बूझनहार।।-जामुन
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
हरी डाल पै मैना बैठी, है कोइ बूझनहार।। -जामुन
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जाहरपीरः गुरु गुग्गा, डा. सत्येन्द्र - Ank-2,1956
जसो, डुंगी, जसराज, नगधीर माधव, नेतो। हदो, कान, हरी, अंत पूते, गोर्धन, पचारण।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
ब्रंदारक रिखमुनी जक्ष गंधरय सब सिरजित।।पंचभूत तिरये गुन सफुट कूट स्थान अचलौ हरी।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
आयामल कबि कृष्न पर ढरयौ कृपा कैँ ढार। भाँति भाँति बिपदा हरी दीनी लच्छि अपार।।26।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
भाई रे दूबे जगदीश कहाँ ते आया, कहो कौने भरमायाअल्लाह, राम करीमा, केसव, हरी हज़रत नाम धराया
मुनादी
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
(2) भव सागर मोहि इकटक जोवत, तलफत रजनी जाई।(3) भव बूड़त भयभीत जगत जन करि अवलंबन दीजै हो हरी।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
चौपड़ के कपड़े में चार ‘फड़े’ होती हैं। प्रत्येक ‘फड़’ पर तीन पंक्तियों में ‘घर’ बने
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो के अ’हद की देहली - हुस्नुद्दीन अहमद
अमीर ख़ुसरो के ज़माना में देहली मुख़्तलिफ़ शहरों पर मुश्तमिल था जो एक दूसरे से मुत्तसिल
मुनादी
सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
अर्थात् जहाँ-जहाँ जो-जो उत्तम गुण मिल सकें, सब ग्रहण कर लेना चाहिए, फिर उन्हीं गुणों को
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
क़स्बा-ए-धोंकल में एक घोड़ी का मशहूर वाक़िआ’वज़ीराबाद (पंजाब) के मुत्तसिल तीन मील के फ़ासला पर एक