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समद क़व्वाल और नियाज़ क़व्वाल जैसे दो नाम ही क़व्वाली की तारीख़ में अमीर खुसरो के बा’द सबसे क़दीम हैं। ये दोनों अमीर खुसरो के ख़ास शागिर्द रहे हैं और उन्होंने ख़ुद खुसरो की मौजूदगी में हज़रत निज़ामूद्दीन औलिया की दरगाह में क़व्वाली पेश की है। उसी ज़माने में कुछ और कव्वालों की मौजूदगी के हवाले भी मिलते हैं लेकिन उनके नामों से वाक़फ़ियत हासिल न हो सकी।
शाह नियाज़ बरेलवी सिलसिला-ए-चिश्तिया के सूफ़ी शो‘रा में गुहर-ए-आबदार की हैसियत रखते हैं, जिन्हें मब्दा-ए-फ़य्याज़ ने
ख़ानक़ाह शरीअ’त-ओ-तरीक़त का संगम और रुश्द-ओ-हिदायत का सरचश्मा-ए-हयात हुआ करती हैं। फ़क़्र-ओ-दरवेशी,तक़्वा-शिआ’री,शब-बेदारी और नफ़स-नफ़स किताब-ओ-सुन्नत पर
सियरुल-अक़्ताब के मुसन्निफ़ ने हज़रत बाबा फ़रीद के ख़ुलफ़ा की तादाद कसीर बताई है।मगर अमीर-ए-ख़ुर्द ने सिर्फ़ मुंदर्जा ज़ैल ख़ुल़फ़ा का हवाला दिया है।1۔ शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल रहमतुल्लाहि अ’लैह
इख़्तिलाफ़-ए-सन :फ़ारसी शोरा के हालात में आ’म तौर पर सिनीन-ओ-तवारीख़ ब-लिहाज़-ए-सेहत मुश्तबा और बसा औक़ात मुख़्तलिफ़
अ’स्र-ए-हाज़िर का एक मशहूर दीदा-वर मुवर्रिख़ और माहिर-ए-इ’मरानियात ऑरनल्ड टाइन बी, अपनी किताब An Historians Approach
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