आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "hii bhai ji ki taraf 5 minutes"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "hii bhai ji ki taraf 5 minutes"
सूफ़ी लेख
क़व्वाली एक ताल का नाम भी
समा’अ में अगर नग़्मा की बा-ज़ाबतगी हो तो वो समा’अ से ख़ारिज हो जाता है। नग़्मा
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
-दोहा, 5
करम कठिन सोरि जाति कुजाती।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
पीर निजाम के रंग में भिजोया री।।
(5)
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में तसव्वुफ़ की इबतिदा और ग़ैर मुस्लिमों की दिलचस्पी और नाअत की इबतिदा
तसव्वुफ़ एक ऐसा मौज़ू’ है जिसमें सारी ख़ल्क़ को ख़ालिक़ की जानिब रुजू’ होने का पैग़ाम
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(10) 71.4-5 काहे क भोग बिरिख अस फरा।
अडा लाइ पंखिन्ह कहँ धरा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
पट्टन सुकृत्य बट्टन सुधन भट्टत जगजस जय ललनि।
भनि मनीराम रघुवंश के को बरनै गुन के गननि।।5।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ख़वातीन की क़व्वाली से दिलचस्पी और क़व्वाली में आशिक़ाना मज़ामीन की इबतिदा
हज़रत ग़ौस-ए-पाक की नियाज़ के साथ क़व्वाली की घरेलू महफ़िलों ने मुस्लिम ख़्वातीन में बे-हद मक़्बूलियत
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली की ज़बान
क़व्वाली का तीसरा अहम जुज़्व मुरक्कब है ज़बान। अपनी ज़रूरियात के पेश-ए-नज़र हम मौसीक़ी में जो
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
60 महल दिषायौ हो गर म्हारे 5 परज
61 राम मोहि सबसों प्यारा 5 परज
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
टेलीविज़न पर क़व्वाली की इब्तिदा
हिन्दोस्तान में टीवी बीसवीं सदी के छठी दहाई में आया। यहाँ सबसे पहले इसकी इब्तिदा दिल्ली
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली की वजह तसमीया
क़ौल और कलबाना अमीर ख़ुसरौ के ईजाद-कर्दा दो ऐसे राग हैं जो अक़्साम-ए-क़व्वाली में शुमार किए