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सूफ़ी लेख
क़व्वाली में उर्दू हिन्दी की इब्तिदा
फ़ार्सी-दाँ हल्क़ों में क़व्वाली की मक़्बूलियत के बाद मूजिद-ए-क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरौ को एक ऐसा अहम
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
आज जिस मौज़ूअ’ पर दा’वत-ए-फ़िक्र दी गई है वो “अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती का मौज़ूअ’ है
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से - मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी
ख़ालिक़-बारी का नाम भी आज के लड़कों ने न सुना होगा। कल के बूढ़ों के दिल
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
जब हम हिन्दुस्तान की तहज़ीब का मुतालिआ’ करते हैं तो देखते हैं कि तरह तरह के
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में ख़वातीन से मुक़ाबले
बीसवीं सदी छठी दहाई में जब पहली ख़ातून क़व्वाल शकीला बानो भोपाली ने क़व्वाली के मैदान
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में तशरीह का इज़ाफ़ा
क़व्वाली के बेशतर सामिईन उर्दू के मुश्किल अल्फ़ाज़ को समझने में दुशवारी महसूस करते हैं, जिससे
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
क़व्वाली शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘क़ौल’ से लिया गया है। क़ौल पढ़ने वाले व्यक्ति को
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में बाज़ाबता राग हैं
समा’अ में महज़ ख़ुश-अल्हानी की इजाज़त है और क़व्वाली राग रागनियों पर मुश्तमिल है, मसलन क़व्वाली
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में ख़वातीन की इब्तिदा
क़व्वाली में ख़वातीन की इब्तिदा बीसवीं सदी की छठी दहाई में हुई, जब कि 1956 में
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली में तबला शामिल
क़ौल, कलबाना, नक़्श, गिल और तराना क़व्वाली की मुख़्तलिफ़ तरज़ें हैं और ये बात साबित होती