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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
वक़्त-ए-आराईश जो की आईना पर उसने नज़रहुस्न ख़ुद कहने लगा इस से हसीं देखा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
'इश्क़ की आईना-दारी जज़्बा-ए-कामिल में हैवो मिरे दिल में है पहले से जो उन के दिल में है
निहाद संडेल्वी
शे'र
हुआ आईना से इज़हार उन का रू-ए-ज़ेबा हैबना मुम्किन है वाजिब से जो शनवा है वो गोया है