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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
अब्दुल हादी काविश
शे'र
क़नाअत दूसरे के आसरे का नाम है 'मुज़्तर'ख़ुदा है जो कोई हद्द-ए-तवक्कुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
विसाल-ए-यार जब होगा मिला देगी कभी क़िस्मततबीअ'त में तबीअ'त को दिल-ओ-जाँ में दिल-ओ-जाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
शे'र
हरे कपड़े पहन कर फिर न जाना यार गुलशन मेंगुलू-ए-शाख़-ए-गुल से ख़ून टपकेगा शहादत का
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
हरे कपड़े पहन कर फिर न जाना यार गुलशन मेंगुलू-ए-शाख़-ए-गुल से ख़ून टपकेगा शहादत का