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शे'र
हुआ आईना से इज़हार उन का रू-ए-ज़ेबा हैबना मुम्किन है वाजिब से जो शनवा है वो गोया है
हकीम मीर यासीन अली
शे'र
वक़्त-ए-आराईश जो की आईना पर उसने नज़रहुस्न ख़ुद कहने लगा इस से हसीं देखा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
देख तेरे मुँह को कुछ आईना ही हैराँ नहींतुझ रुख़-ए-रौशन की है महर-ओ-मह-ए-ताबाँ में धूम
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त