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कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
सरसब्ज़ गुल की रखे ख़ुदा हर रविश बहारऐ बाग़बाँ नसीब हो तुझ को बला-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
सरसब्ज़ गुल की रखे ख़ुदा हर रविश बहारऐ बाग़बाँ नसीब हो तुझ को बला-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
जल ही गया फ़िराक़ तू आतिश से हिज्र कीआँखों में मिरी रह न सका यारो इंतिज़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
गुलज़ार में दुनिया के हूँ जो नख़्ल-ए-भुचम्पाख़्वाहिश न समर की न मियाँ ख़ौफ़ क़हर का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
ख़्वाजा मिरे का राज़ निराला ख़्वाजा मिले तो रैन उजालादरस बना जग घोर अंधेरा दिन अपने भी रातें हैं
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
मैं हाथ में हूँ बाद के मानिंद पर-ए-काहपाबंद न घर का हूँ न मुश्ताक़ सफ़र का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
पहुँचा है जब से इ’श्क़ का मुझ को सलाम-ए-ख़ासदिल के नगीं पे तब से खुदाया है नाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
मर ही गए जफ़ाओं से क़ातिल तड़प-तड़पमैं क्या कि और कितने ही बिस्मिल तड़प-तड़प
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
कुछ आरज़ू से काम नहीं 'इ’श्क़' को सबामंज़ूर उस को है वही जो हो रज़ा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
मय-ख़ाना में ख़ुदी को नहीं दख़्ल शैख़-जीबे-ख़ुदी हुआ है जिन ने पिया है वो जाम-ए-ख़ास