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सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाल: फूलों का
शाह नसीर
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सुब्ह नहीं बे-वज्ह जलाए लाले ने गुलशन में चराग़देख रुख़-ए-गुलनार-ए-सनम निकला है वो लाला फूलों का
शाह नसीर
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यारब जो ख़ार-ए-ग़म हैं जला दे उन्हीं के तईंजो ग़ुंचा-ए-तरब हैं खिला दे उन्हों के तईं
मीर मोहम्मद बेदार
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आग लगी वो इशक की सर से मैं पाँव तक जलाफ़र्त-ए-ख़ुशी से दिल मिरा कहने लगा जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
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साँस में आवाज़-ए-नय है दिल ग़ज़ल-ख़्वाँ है 'ज़हीन'शायद आने को है वो जान-ए-बहाराँ इस तरफ़
ज़हीन शाह ताजी
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सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा
हरी चंद अख़्तर
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जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होताजहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता
कामिल शत्तारी
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जो दिल हो जल्वा-गाह-ए-नाज़ इस में ग़म नहीं होताजहाँ सरकार होते हैं वहाँ मातम नहीं होता
कामिल शत्तारी
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करें आह-ओ-फ़ुग़ाँ फोड़ें-फफोले इस तरह दिल केइरादा है कि रोएँ ई’द के दिन भी गले मिल के