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दिल है आतिश-कदा-ए-ग़म में पिघलने के लिएशम्अ' पैदा हुई किस वास्ते जलने के लिए
रहें क्यूँकर न गिर्द उस रू-ए-आतश रँग के गेसूइ'बादत हिंदुओं के दीन में आतिश-परस्ती है
सियाने ख़लक़ सें यूँ भागते हैंकि ज्यूँ आतिश सेती भागे है पारा
आतिश-ए-दोज़ख़ से ऐमन रख मुझेहो मिरी क़िस्मत में जन्नत की हुआ
आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँसोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है
जलाया आतिश-ए-गुल ने चमन में हर तिनकाबहार फूँक गई मेरे आशियाने को
आतिश-परस्त कहते हैं अहल-ए-जहाँ मुझेसरगर्म-ए-नाला-हा-ए-शरर-बार देख कर
बसान-ए-काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा मिरे गुल-रूतिरे जले भुने और ही बहार रखते हैं
ले 'ज़हीन' से कोई जाम-ए-आतिश तर लेआग और पानी का देख इस्तिहाला शैख़
जारी थी 'असद' दाग़-ए-जिगर से मिरी तहसीलआतिश-कदा जागीर-ए-समुंदर न हुआ था
रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमामदहका हुआ है आतिश-ए-गुल से चमन तमाम
आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक-शोला-ए-ईमा तुझ सेचश्मक-आराई-ए-सद-शहर चराग़ाँ मुझ से
बर्क़-ए-बजान-ए-हौसला आतिश-फ़गन 'असद'ऐ दिल-फ़सुर्दा ताक़त-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नहीं
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
वही क़तरा वही दरिया वही क़ुल्ज़ुम वही कूज़ावही है बाद और आतिश वही पानी वही ओला
शम्अ' के तौर जलाता हूँ जिगर आतिश मैंसुख़न-ए-इ'श्क़ ज़बाँ अपनी पे जब लाता हूँ
मैं शम-ए-फ़रोज़ाँ हूँ मैं आतिश-ए-लर्ज़ां हूँमैं सोज़िश-ए-हिज्राँ हूँ मैं मंज़िल-ए-परवानः
तू ने क्या आतिश-ए-हल-कर्दा पिला दी साक़ीभून डाला है जिगर आग लगा दी साक़ी
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