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कलाम
हम को भी पाएमाल कर उम्र तिरी दराज़ होमस्त-ए-ख़िराम-ए-नाज़ इधर मश्क़-ए-ख़िराम-ए-नाज़ हो
बेदम शाह वारसी
कलाम
तर्ज़-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से लाखों हैं पाएमालउस शोख़ फ़ित्ना-गर की है रफ़्तार हर तरफ़
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
कोई क्या चल सकेगा उस ख़िराम-ए-नाज़ से बढ़ करक़यामत का तुम्हारी ठोकरों में दम निकलता है
दाग़ देहलवी
कलाम
वो क्या ख़िराम-ए-नाज़ है जो फ़ित्ना-ज़ा न होवो फ़ित्ना क्या है जिस से क़ियामत बपा न हो
अमीर मीनाई
कलाम
हम वही थे जो हुआ करते थे पामाल-ओ-ख़िरामन जमा ख़ाक पे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मेरे बा'द