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कलाम
परस्तार-ए-मोहब्बत को ख़याल-ए-मा-सिवा क्यूँ होख़ुशी भी तेरे मिलने की शरीक मुद्दआ' क्यूँ हो
माहिरुल क़ादरी
कलाम
खयाल-ए-मा-सिवा पी की नगरिया कैसे ले जाऊँवो यक्ता है मैं दूजे की गगरिया कैसे ले जाऊँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
झुकते तुर्बत पे नहीं झुकते किसी और से हैंमा-सिवा उस का कहाँ राज़ है पिन्हाँ अपना
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
जो मा-सिवा से गुरेज़ाँ हो आस से क्या उल्फ़तख़ुदा से ग़ैर-ए-ख़ुदा को बताओ क्या निस्बत
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
मोहब्बत को ख़याल-ए-मा-सिवा छू भी नहीं सकताहवस की जादा-पैमाई फ़क़त सूद-ओ-ज़ियाँ तक है