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दुनिया में कुछ नहीं है कहा मान जाइएपर्दे पड़े हुए हैं ख़ुदा तक उठाइए
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गयाझूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
दिल की हर एक बात मान दिल पे कोई जफ़ा न करदिल है गुज़र-गह-ए-हबीब उस को कभी ख़फ़ा न कर
इतनी अरज मान 'काज़िम' कीसदा बना रह मेरे डेरे
दोगाना छोड़ कर गाना सुनो तुमज़रा तो मान लो कहना किसी का
मिन्नतें मान याँ दरगाहों में चले बाँधेपर मयस्सर न हुआ साथ सुलाना तेरा
डर नाला-हा-ए-ज़ार से मेरे ख़ुदा को मानआख़िर नवा-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी नहीं
हैं शे'र-फ़हम जितने ज़माने में ला-इ'लाजऐ 'दर्द' मानते हैं ये सब मान कर मुझे
'ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइ'ज़ बुरा कहेऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे
बाज़ आ मान कहा उस की तरफ़ फिर मत जाक्या नहीं और कहीं तेरा ठिकाना ऐ दिल
इस फ़ित्ना-गर को जीत लिया हार मान करक्या-क्या मज़ा दिया हमें इस जीत हार ने
ये जुदाइयों के रस्ते बड़ी दूर तक गए हैंजो गया वो फिर न आया मिरी बात मान जाओ
हस्ती-कम-सबात भी आख़ीर-कार कुछ तो हैमान लिया कि कुछ नहीं हस्ती-कम-सबात में
तेरी बात मान लेता कभी तुझ से कुछ न कहतामेरे बे-क़रार दिल को जो ज़रा क़रार होता
तू 'अबस मिटाता है रंग-ओ-बू तुझे कौन जाने है कौन तूकहा मान 'असग़र' बे-नवा तू यहाँ से अपने वतन में जा
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