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देखना गर हो प्यार की आँखेदेख लो मेरे यार की आँखे
न हो गर आश्ना नहीं होताबुत किसी का ख़ुदा नहीं होता
कोई दिन गर ज़िंदगानी और हैअपने जी में हम ने ठानी और है
रहम है जिस के सितम में वो सितम-गर और हैहै वफ़ा जिस की जफ़ा में वो जफ़ा गर और है
जैसे ये मीर का सुना है शे'रगर ये बे-इख़्तियार है आता
गुर की कृपा जब भई मो परतब घर में आयो पिया मेरे
जमाल-ए-यार हर सू जल्वा-गर हैजिधर देखा वही पेश-ए-नज़र है
इक दम कोई गर देखे वो जल्वा-ए-जानानामुझ सा बने दीवाना मुझ सा रहे मस्ताना
यूँही जुदा-जुदा गर ऐ जान-ए-मन रहेगासरसब्ज़ किस तरह फिर दिल का चमन रहेगा
गर देखिए तो मज़हर-ए-आसार-ए-बक़ा हूँऔर समझिए जूँ अ'क्स मुझे मह्व-ए-फ़ना हूँ
ज़ोहरा गर ऐसा ही शाम-ए-हिज्र में होता है आबपरतव-ए-महताब सैल-ए-ख़ानुमाँ हो जाएगा
क्या मर गया हूँ देख तो ऐ चारागर मुझेउन की ज़बाँ से मेरी वफ़ा का बयाँ है अब
जल्वा-गर यार मगर क़त्ल-गह-ए-आ’म में हैजब बुलाता हूँ मैं सुनता हूँ क़ज़ा काम में है
तू दोस्त कसू का भी सितमगर न हुआ थाऔरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था
तुम को गर ख़ुद से जुदा समझूँ तो मैं काफ़िर हूँमैं अगर ग़ैर-ए-ख़ुदा समझूँ तो मैं काफ़िर हूँ
तेरी चश्म-ए-करम का गर इशारा हो तो ऐसा होकहे ख़ुद बे-कसी मेरी सहारा हो तो ऐसा हो
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