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तेरी चश्म-ए-करम का गर इशारा हो तो ऐसा हो

फ़राज़ वारसी

तेरी चश्म-ए-करम का गर इशारा हो तो ऐसा हो

फ़राज़ वारसी

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    तेरी चश्म-ए-करम का गर इशारा हो तो ऐसा हो

    कहे ख़ुद बे-कसी मेरी सहारा हो तो ऐसा हो

    जुम्बिश हो लबों पर और दीवानों की बिन आए

    निगाहों ही निगाहों में इशारा हो तो ऐसा हो

    ब-जुज़ याद-ए-सनम जो सब जला कर ख़ाक कर डाले

    मोहब्बत का मिरे दिल में शरारा हो तो ऐसा हो

    फैले ग़ैर के आगे कभी दस्त-ए-तलब मेरा

    मिरे वारिस करम मुझ पर तुम्हारा हो तो ऐसा हो

    हो ज़िक्र-ए-यार बातें यार की और यार के चर्चे

    हुआ है रब से शुग़्ल-ए-ज़ीस्त हमारा हो तो ऐसा हो

    हो सर पर दामन-ए-वारिस लबों पर कलमा-ए-तय्यब

    सफ़र महशर को या-रब जब हमारा हो तो ऐसा हो

    दिया है दिल तो दिल में दर्द हो और दर्द में लज़्ज़त

    करम मुझ पर मिरी जाँ गर तुम्हारा हो तो ऐसा हो

    जहाँ देखूँ जिधर देखूँ सहर देखूँ या शब देखूँ

    तू ही तो बस नज़र आए नज़ारा हो तो ऐसा हो

    किसी करवट किसी पहलू सुकून-ए-दिल पाऊँ मैं

    तिरी उल्फ़त में हाल-ए-दिल हमारा हो तो ऐसा हो

    जबीं सज्दे में हो और सामने तू हो निगाहों में

    'फ़राज़' आ'लम से जाना जब हमारा हो तो ऐसा हो

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