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कलाम
सब कुछ मैनूँ पया सुणीवे जो बोले माशा-अल्लाह हूदर्द-मंदाँ एह रम्ज़ पछाती बे-दर्दां सिर खल्ला हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लाई हूनफ़ी इसबात दा पानी मल्या हर रगे हर जाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्दा हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र दा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह पढ़यों हाफ़िज़ होयों न गया हिजाबों पर्द: हूपढ़ पढ़ आलिम फ़ाज़िल होयों तालिब होयों ज़र्दा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
हू दा जामा पहन कराहाँ इस्म कमावण ज़ाती हूकुफ़र इस्लाम मक़ाम न मंज़ल न उत्थ मौत हयाती हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अल्लाह सहीह कीतोसे जिस दम चमकया इश्क़ अगोहाँ हूरात दिहाँ दे ता तिखेरे करे अगोहाँ सोहाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कलमे लक्ख करोड़ां तारे वली कीते सै राहीं हूकलमे नाल बुझाए दोज़ख़ जिथ अग्ग बले अज़गाही हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुण फ़रियाद पीरां दिआ पीरा आख सुणावाँ कैनूँ हूतैं जेहा मैनूँ होर न कोई मैं जेहियाँ लक्ख तैनूं हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ अलस्त सुणया दिल मेरे जिंद बला कूकेंदी हूहब वतन दी ग़ालब हुई हिक्क पल सौण नून दीनदी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुल्तान बाहू
कलाम
रातीं ख़्वाब न तिन्हाँ हरगिज़ जेड़े वाले हूबाग़ाँ वाले बूटे वाँगूँ तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद हादी सबक़ पढ़ाया पढ़यों बिना पढीवे हूउँगलियाँ विच कंनां दित्तियां, सुणयों बिना सुणीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
सुल्तान बाहू
कलाम
पीर मिले ते पीड़ न जावे ताँ उस पीर की धरना हूमुर्शिद मिल्याँ रुश्द न मन नूँ ओह मुर्शिद की करना हू