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कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
सहर उस हुस्न के ख़ुर्शीद को जाकर जगा देखाज़ुहूर-ए-हक़ कूँ देखा ख़ूब देखा बा-ज़िया देखा
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
लहराती है जब ज़ुल्फ़-ए-जानाँ बादल को पसीना आता हैमा'लूम ये होता है जैसे सावन का महीना आता है
नाज़ाँ शोलापुरी
कलाम
मुम्ताज़ अशरफ़ी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है